जहांगीर आर्ट गैलरी की गैलरी 3 में 43 चित्रों को प्रदर्शित करके 05 नवम्बर 2008 को प्रातः से ही उद्घाटन की तैयारी में हम लोग लग गये तथा कुछ समय के बाद पंडित परमानंद यादव जी भी आ गये वह भी हम लोगों का हाथ बटाए धीरे-धीरे संतोष के कलाकार मित्र आ गये लगभग हर काम होता गया, फिर संजय सबके साथ भोला,एल.पी.,संग्राम जी, अपने मित्रों के साथ आ गये और फिर रमेश जी क्योंकि इन्हें ही संचालन करना था. कला इन दिनों में बहुत सारे आयाम बदलती जा रही है जिसके कारण इन दिनों दुनिया में कला की चर्चा जोरों पर है, कलाकार केन्द्र बिन्दु है या उसकी कला, कला प्रमुख है या कलाकार, किस स्कूल का है कहां का है कितना कीमती है, आज बाजार में बड़ी बड़ी कंपनियां कला के व्यापार में आगे आकर कला को बेचा खरीदा जा रहा है जिसमें नाना प्रकार की कलाओं की पहुँच हो रही है यही सब दिखाई दे रहा था कला के रूप में जहाँगीर आर्ट गैलरी में - कहीं नायब तो कहीं प्रयोग और तो और इंडस्ट्री की तरह कलाकृतियों का उत्पाद . दूसरी ओर एक वर्ग वह उठ खडा़ हुआ है जिसे आज कला संग्राहक के रूप में देखा जाता है वह बाजार का प्रतिनिधि होता है और तय करता है कलाओं का वजूद, वह कलाओं की कितनी समझ रखता है इस पर सवाल उठाना ठीक है कि नहीं, यह उनसे पूछना पड़ सकता है, उसकी आंख कलाकार की कृतियों की खरीद की दिशा तय करता है, बेशक कलाओं के लिए ये सवाल सहजतया उठने लगते हैं.
पर कैसे तय हो कला का उत्थान यह सवाल कला समीक्षकों के लिए छोड़ दिए जाने पर भी अनेक खतरे मौजूद रहते हैं, इन्ही सब विचारों को सहेजे मैं अपने चित्र इस कलादीर्घा में लगा रखा हूँ देखिये क्या प्रतिक्रिया मिलती है ?